उत्तराखंड में भी हिमाचल जैसी तबाही, अलकनंदा नदी में डूबी 15 फीट ऊंची शिव मूर्ति
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प्रयाग भारत, उत्तराखंड;पहाड़ों से लेकर मैदानों तक, इस बार मॉनसून ने राहत नहीं, बल्कि तबाही का पैगाम लाया है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की वादियों में जो बारिश कभी जीवनदायिनी मानी जाती थी, वही अब विनाश का कारण बन गई है। आसमान से गिरती मूसलाधार बारिश और नदियों का उफान अब डराने लगा है। ब्यास, अलकनंदा और सौंग जैसी नदियाँ अपने किनारों को लांघ चुकी हैं, और उनके साथ बह रहा है लोगों का चैन, उनकी ज़िंदगी की जमा-पूंजी।
हिमाचल प्रदेश के मंडी में ब्यास नदी का रौद्र रूप देखकर प्रशासन को रेड अलर्ट जारी करना पड़ा। वहीं रुद्रप्रयाग में अलकनंदा का जलस्तर इतना बढ़ गया कि भगवान शिव की विशाल प्रतिमा का बड़ा हिस्सा जल में समा गया। यह दृश्य श्रद्धा और भय का अजीब मिश्रण था—जैसे प्रकृति खुद चेतावनी दे रही हो। चमोली में पहाड़ दरकने से रास्ते बंद हो गए हैं, और देहरादून में सौंग नदी की लहरें बेकाबू हो चुकी हैं।
इन हालातों में सिर्फ सड़कें और पुल ही नहीं टूटे, लोगों की उम्मीदें भी दरक गई हैं। मंडी में सैकड़ों सड़कें बंद हैं, बिजली और पानी की आपूर्ति ठप है, और कई गांवों का संपर्क पूरी तरह कट चुका है। राहत और बचाव कार्य जारी हैं, लेकिन बारिश की रफ्तार और पहाड़ों की नाजुकता के सामने हर कोशिश छोटी लगती है।
मॉनसून की यह मार केवल एक मौसमीय घटना नहीं है—यह एक चेतावनी है। जलवायु परिवर्तन, अनियोजित विकास और पहाड़ों की अंधाधुंध कटाई ने इस संकट को और गहरा बना दिया है। यह समय है जब हमें सिर्फ राहत कार्यों से आगे बढ़कर दीर्घकालिक समाधान की ओर देखना होगा।
प्रकृति की इस विनाशलीला के बीच एक सवाल हर किसी के मन में उठता है—क्या हम अब भी नहीं समझेंगे? क्या हमें हर साल इस तरह की त्रासदी का इंतज़ार करना होगा, या अब हम सच में बदलाव के लिए तैयार हैं?