Uttara Pradesh

किसके सिर सजेगा यूपी बीजेपी अध्यक्ष का ताज, केशव मौर्य की टिप्पणी ने बढ़ाया सस्पेंस

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प्रयाग भारत, उत्तर प्रदेश; उत्तर प्रदेश में भूपेंद्र चौधरी के बाद भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष कौन बनेगा? पिछले कई महीनों से इस सवाल पर चर्चा चल रही है, लेकिन अब तक किसी नेता के नाम पर पार्टी की मुहर नहीं लगी है. सूत्रों के अनुसार पार्टी के भीतर कई नेताओं के नाम पर विचार हो रहा है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव के पीडीए में सेंध लगाने के लिए इस बार फिर से बीजेपी किसी ओबीसी समुदाय के नेता पर दांव लगा सकती है.

 

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव-2024 में यूपी में खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है. इस वजह से जिसे भी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाएगी, उसके सीएम योगी से रिश्तों का भी ख्याल रखा जाएगा. 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए मात्र 36 सीटें ही जीत पाई थी. इनमें बीजेपी के 33, आरएलडी के 2 और अपना दल के एक सांसद हैं. वहीं, साल 2019 के मुकाबले एनडीए को 28 सीटों का नुकसान हुआ था. जबकि सपा और कांग्रेस ने मिलकर 43 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जिसमें सपा को 37 और कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं. यह सपा का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन था. गौरतलब है कि सपा ने 2004 में 35 सीटें जीती थीं, जबकि 2014 और 2019 में उसे केवल 5 सीटें मिली थीं. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में 41.4% वोट मिले थे, जबकि 2019 के चुनाव में 49.6% वोट मिले थे. मतलब बीजेपी का वोट शेयर करीब 8% कम हो गया था.
अध्यक्ष के चुनाव में कहां फंसा है पेच?
गौरतलब है कि यूपी में बीएसपी लगातार कमजोर हो रही है. ऐसे में बीजेपी का सीधा मुकाबला सपा से है. पिछले चुनाव में पीडीए की सफलता से उत्साहित अखिलेश यादव MY समीकरण पर दांव लगाने की बजाय पिछड़ों और दलितों को अधिक टिकट देने के मूड में हैं. ऐसे में बीजेपी को भी अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी. सूत्रों के अनुसार अध्यक्ष के चुनाव से पहले इन 4 सवालों पर मंथन हो रहा है:
  • नया अध्यक्ष किस जाति या वर्ग का होना चाहिए?
  • अखिलेश यादव के पीडीए की काट
  • नया अध्यक्ष पूर्वांचल का हो या फिर पश्चिमी यूपी से?
  • सीएम योगी नए अध्यक्ष के नाम से सहमत हैं या नहीं?

 

क्या ओबीसी समुदाय से होगा बीजेपी अध्यक्ष?
2024 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव के पीडीए लहर के बीच बीजेपी को उत्तर प्रदेश में ओबीसी और दलित वोट अपेक्षाकृत कम मिले. इस कारण पार्टी इन समुदायों को साधने के लिए ओबीसी या दलित नेता को प्राथमिकता दे सकती है. ऐसे में केशव प्रसाद मौर्या, स्वतंत्रदेव सिंह, बेबी रानी मौर्य, धर्मपाल सिंह लोधी, अमर पाल मौर्या, बीएल मौर्या और बाबू राम निषाद का नाम चर्चा में है. हालांकि, जब केशव प्रसाद मौर्या से यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ‘चर्चा में कोई दम नहीं होता है, बल्कि पर्चे में होता है और जो पर्चे में होता है वो चर्चा में नहीं होता.’ अब केशव मौर्या के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं.

 

क्या पर्चे से फिर निकलेगा जिन्न?
वहीं ब्राह्मण समुदाय से पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और लक्ष्मीकांत वाजपेयी का नाम चर्चा में है. इसके अलावा केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद का भी नाम सामने आया है. अगर जितिन प्रसाद को यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बनाया जाता है तो पश्चिम यूपी में ब्राह्मण समुदाय को मजबूती मिल सकती है. वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री और गौतम बुद्ध नगर से सांसद महेश शर्मा का भी नाम चर्चा में है. हालांकि चर्चा में बहुत सारे नाम हैं और यूपी के नेता लखनऊ से दिल्ली और नागपुर की दौड़ भी लगा रहे हैं, लेकिन पीएम मोदी और 2014 के बाद की बीजेपी हमेशा अपने फैसले से विरोधियों को मात देती रही है. यानी जिस नेता का नाम चर्चा में होता है, उसका नाम पर्चे में नहीं होता. दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश में सीएम का चुनाव इस बात का ताजा उदाहरण है.

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